गणेश
चतुर्थी की कहानी
गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र व देश
के दुसरे हिस्सों में बड़ी धूम धाम से और पुरे हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है |
शिव पुराण के अनुसार एक बार महादेव जी पहाड़ों पर तपस्या करने चले गये | उनके जाने
के बाद माता पार्वती जी अकेली पड गई तब उन्होंने अपनी शक्ति से अपने हाथो के मैल
से एक पुतला बनाया फिर उस पुतले में जान डाल दी | उसके बाद माता पार्वती ने उस
बालक को गणेश नाम दिया | माता पार्वती उस बालक से बहुत प्रेम करती थी | बालक गणेश को अपनी माता के हाथ से बने मोदक लड्डू
सबसे ज्यादा पसंद थे | एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही तो उन्होंने बालक
गणेश के हाथ में मुग्दल दे कर बोला की पुत्र जब तक मै स्नान करके वापस नहीं आती तब
तक तुम किसी को भी इस गुफा के अंदर मत आने देना | माता के जाने बाद बालक गणेश गुफा
के बाहर खेलने लग गये तभी कुछ देर बाद महादेव जी अपनी तपस्या समाप्त कर के वापस आ
गये और गुफा के भीतर जाने लगे तो बालक गणेश ने उन्हें वहीं रोक दिया | पहले तो
भोले नाथ जी ने उन्हे प्यार से बहुत बार समझाया परन्तु गणेश जी भी बहुत ही जिद्दी
थे अपनी माँ की बात को रखने पर जिद्द पर उतार आये, इस पर भोले नाथ जी बहुत ज्यादा
क्रोधित हो गये और बालक गणेश के साथ युद्ध करने लगे | और गुस्से में महादेव जी ने
अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर काट दिया |
तभी माता पार्वती गुफा से बाहर आ गई
और अपने पुत्र को मृत देख कर भगवान शंकर पर बहुत क्रोधित हुई और विलाप करने लगी |
माता पार्वती का विलाप सुन कर सभी देवी व देवता वहाँ प्रकट हो गये और देवी से
प्रार्थना करने लगे की आप मान जाओ और महादेव जी ने जो भी कुछ किया वो अज्ञानता वश
किया है पर उस समय माता पार्वती को मनाना असम्भव था और गुस्से में भर कर माता पार्वती सृष्टी का विनाश करने लगी तभी देव
ऋषि नारद जी के समझाने पर महादेव जी ने अपने गणों की उत्तर दिशा की तरफ भेज कर
आदेश दिया की जो भी जीव तुम्हे सबसे पहले मिले तुम उसका सिर काट कर ले आओ | कुछ ही
समय बाद महादेव जी के गण एक हाथी के बच्चे का सिर काट कर ले आये और महादेव जी ने
बालक गणेश जी के धड़ को हाथी के बच्चे के सिर से जोड़ दिया | उसके पश्चात् माता
पार्वती बहुत खुश हुई और सब देवताओं ने बालक गणेश को बहुत सारे आशीर्वाद दिए और
तुम और देवताओं में सबसे पहले गणेश जी की पूजा होगी सारी, सिद्धिय तुमे प्राप्त
होगी और उसके बाद ही कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत होगी बिना किसी विघ्न बाधा के |
इसलिए लिये उन्हें गज मुख भी कहा जाता है और जिस दिन ये घटना घटी उस दिन भद्रपद
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का ही दिन था इस
लिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के नाम से बहुत धूमधाम से मनाया जाता है |
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