हमारी कुंडली का लिखा सच क्यों नहीं हो पाता ?
हमने
कई लोगों को कहते सुना है की कुंडली में ऐसा अच्छा लिखा था परन्तु ऐसा हुआ नहीं बल्कि
नुकसान ही हो गया तब क्या ग्रह और नक्षत्रो पर विश्वास नहीं करना चाहिए । कुंडली में
लिखा लगभग ४५ से ६० प्रतिशत ही सच हो पाता है । मित्रों इसका एक कारण है की जातक जिस परिवार या कुटुंब से सम्बन्ध रखता है उसका भाग्य उससे
बंधा होता है । अगर परिवार की कुंडली अच्छी होती है तो जातक के तरक्की के रास्ते खुलते
है । जब कुटुंब का समय खराब होता है तब परिवार जनों पर आपति पड़ती है और जातक की कुंडली
के शुभ ग्रह भी बुरा फल देने लगते है या आंशिक शुभता देते है ।
किसी
की कुंडली में फलादेश होता है की जातक शादी के बाद उन्नति करेगा परन्तु शादी के बाद
यदि वधु का गुरु अस्त या दुष्ट ग्रहों से दृष्ट हो तो उसके पति को समस्या आती है इस
प्रकार जातक के शुभ ग्रह पत्नी के भाग्य कुंडली के ग्रहों से प्रभावित हो जाते है और
अपना पूरा और अच्छा फल नहीं दे पाते है जिसके कारण कुंडली का फलादेश पूरा सच नहीं होता
है । इसी तरह किसी बच्चे की कुंडली में राहु,केतु या शनि की दशा
या महादशा हो तो बच्चे के माता पिता के जीवन में कष्ट आता है क्यूंकि सूर्य को पिता
और चन्द्रमा को माता समान समझा गया है और ये ग्रह चन्द्रमा और सूर्य के शत्रु ग्रह
है जिसके कारण बच्चों पर दशा आने से माता और पिता को दुःख झेलने पड़ते है ।
इसमें
बीमारी,झगडे- क्लेश, आर्थिक नुक्सान और
कोर्ट मुकदमों की परेशानी आदि जैसी समस्याएं हो जाती है इसके विपरीत यदि बच्चे और पत्नी
सुख लिखवा कर लाये है तो पिता के कार्य अपने आप सुधर जाते है क्यूंकि सभी अपनी किस्मत
लिखवा कर लाते है । यदि संतान के भाग्य में सुख लिखा है तो पिता के कार्यो से उसे सुख
भोगने को मिलता है ।
राहु केतु जिस घर में विराजित हो जावे तो घर को सुखविहीन करके
ही दम लेते है । इस प्रकार जिस घर का जैसा भाग्य लिखा है जातको का भी भाग्य एक दूसरे
से जुड़ा होता है जैसे किसी सदस्य की तरक्की हो जाये तो वह सोचता है की अपने परिवारजन
की भी तरक्की करवा दूँ पर कई बार भाई भाई का दुश्मन बन जाता है पत्नी पति की और पति
पत्नी और बच्चों का शत्रु बन बैठता है जिसके कारण ना उसे सुख मिलता है और ना ही परिवारजनो
को । अतः कुटुंब जनो की कुंडली देख कर ही फलादेश करना उचित रहता है क्यूंकि परिजनों
का भाग्य भी प्रभावित करता है ।
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