कुछ लोग कहते है कि टेलीपैथी एक मात्र भ्रम है
परन्तु ये असत्य है , अगर आप टेली पैथी को झूठ मानते है तो फिर महाभारत को भी झूठ
मानते है ? संजय ने धृतराष्ट्र को सारी महाभारत की कथा महल में बैठे बैठे ही सुना
दी. ये सिर्फ मात्र एक छोटा सा उदहारण है टेली पैथी का. इसके अलावा हमारे इतिहास
से अनेकों ऐसी घटनाये है जिनसे telepathy की वास्तविकता का आभास होता है.
How to learn Telepathy ? |
सामान्य रूप से टेली पैथी का मतलब एक ऐसी विद्या
है जिसके अंतर्गत हम किसी भी व्यक्ति के मन की बात जान सकते है चाहे वो व्यक्ति
बेसक हमसे दूर ही क्यों न हो. इस विद्या से हम अपने अपनी बात दूसरो से मनवा भी
सकते है. हमारे ऋषि मुनि , संत साधू इस विद्या में निपुण होते थे. इस विद्या को हर
को ग्रहण नहीं कर सकता क्योकि इसके लिए सर्वप्रथम अंतर्मन की शुद्धि की आवशकता
होती है. यदि साधक के मन में इस विद्या का दुरूपयोग करने की भावना है तो ये विद्या
सफल नहीं होती , जो साधक सच्चे मन से और निष्काम भाव से इस विद्या को सीखना चाहता
है केवल वो ही इस विद्या को ग्रहण कर सकते है.
Telepathy kya hai ? |
विज्ञान जहाँ पर जाकर शून्य हो जाती है और काम
करना बंध कर देती है तो वहाँ से टेलीपैथी काम शुरू करती है, वो टेली पैथी की
शुरुआत है, आज के इस विज्ञान और दौर में हम इस विद्या का विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग
करते है. जैसे
- अपराध को रोकने के लिए
- बच्चों को बुरी शिक्षा से बचाने के लिए
- प्रेम प्रसंग को सफल बनाने के लिए
- किसी के मन की बात जानने के लिए
- बच्चों के सम्पूर्ण विकास और शिक्षा के विस्तार के लिए
- मानव के बौद्धिक विकास के लिए
- दिमागी रूप से बीमारी व्यक्तियों के उपचार के लिए
- आतंकवाद को रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है
टेलीपैथी सीखने के लिए कोई स्कूल की जरुरत नहीं ये
तो अभ्यास से और मानसिक संतुलन से ही संभव है, इसका उपयोग सही दिशा में होना चाहिए,
गलत मकसद की इच्छा रखने वाले इसमें कामयाब भी नहीं होते. इसका सही ज्ञान कोई संत
महात्मा ही दे सकता है , जो आशीर्वाद से भी प्राप्त की जा सकती है,
टेली पैथी का महत्व / Importance of Telepathy |
यह एक ऐसी विद्या है जिसमें हमारे शरीर की
इन्द्रियां काम नहीं करती जैसे ( आँख , नाक , कान , तवचा इत्यादि ) न तो हम इस
विद्या को साधारण आँखों से देख सकते है न सुन सकते है और सूंघ सकते है और न ही
इन्द्रियों को से इसका भोग कर सकते है , यह तो आत्मा की शक्ति को महसूस करने वाली
बात है जब इन्द्रियां काम करना बंद कर देती है और शरीर में केवल आत्मशक्ति का
विस्तार हो जाता है तब ही इस विद्या का संभव होने का संयोग बनता है .
जय श्री राम जी
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