पितृपक्ष
(श्राद्ध) क्या होता है ?
कनागत , पितृपक्ष और श्राद्ध का
हमारे जीवन में अपने पूर्वज या जो हमारे माता –पिता, दादा – दादी, परदादा और परदादी है उनको याद करने और
श्रधांजली देने का माध्यम है | हम उनकी
आत्मा की शान्ति के लिए हवन करते है दान दक्षिणा दे कर पंडितो को तृप्त करते है
हमारे हिन्दू धर्म में गायों और पक्षियों को भी भोजन कराना जरूरी माना जाता है |
कर्ण महाभारत का सबसे शक्तिशाली योद्धा जिसे हम दान वीर कर्ण के नाम से भी जानते
है और याद करते है | जब वह अपनी मृत्यु के पश्चात स्वर्ग गया तो इंद्र भगवान जो
स्वर्गके स्वामी है उन्होंने उनको भोजन में सोने चांदी और हीरे मोती दिए | परन्तु
कर्ण ने खाने में साधारण भोजन करने की इच्छा जताई तब इंद्र देवता ने कहा की तुमने
सारी उम्र सोने, चांदी और हीरे, मोती आदि का ही दान दिया है और तुमने कभी अपने
पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कभी किसी भूखे को भोजन का नहीं दिया है तो तुम
भोजन पाने के अधिकारी नहीं हो तब कर्ण ने हाथ जोड़ के इंद्र देवता से विनती की अपनी
इस गलती को सुधारना चाहता हूँ और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पृथ्वी
लोक पर जाकर पिंड दान, हवन, तर्पण करना चाहता हूँ | तब कर्ण 15 दिन के लिए धरती पर
आये थे | इस अवधि में अब
पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।
श्राद्ध
पूजन का मुख्य स्थान ?
अपने पूर्वजों
की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंड दान करना अति आवश्यक है | पिंड दान करने
के लिए अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर अश्विन पक्ष की अमावस्या तक किया
जाता है | ये सोलह दिनों का होता है सिर्फ गया जी में यह सत्रह दिन तक किया जाता
है | हिंदी धर्म में ऐसी मान्यता है की इन
दिनों में जो भी व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करता है उन्हें मन की शन्ति
और उनके पूर्वजों को अवश्य मोक्ष मिलता है| सबसे ज्यादा श्राद्ध और पिंडदान के
लिये जिस स्थान का सबसे ज्यादा महत्व है वो है ‘गया जी’ | ऐसी मान्यता है
की भगवान् श्री राम और सीता जी ने ही राजा दशरथ जी की आत्मा की शांति और मोक्ष के
लिए ‘गया जी’ में ही पिंडदान किया था | बड़े - बड़े महापंडित और ऋषि मुनियों का
कहना है की ‘गया जी’ में परिवार का एक सदस्य ही जाकर पिंड दान करता है | और ‘गया जी’ करने
का ही मतलब होता है अपने पूर्वजों और पितरों के नाम का श्राद्ध करना, पिंडदान
करना | और गुरुड पूराण में भी ऐसा लिखा गया है जब आप अपने घर से गया जी में, अपने
पूर्वजों के श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए निकलते है तब आप जितने कदम चलते है उतनी ही सीढ़ी अपने पितरों के लिए बनाते जाते है | ‘गया जी’ को मोक्ष की धरती भी कहा
जाता है गुरुड, विष्णु और वायु
पुराण में भी लिखा गया है की ‘गया जी’ में विष्णु भगवान का वास है और वहाँ
पर स्वयं पितृ देवता के रूप में वास करते है और जो व्यक्ति वहाँ जाकर अपने पितरों
के लिए पिंड दान करते है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकीन आप हरिद्वार, कुरुशेत्र, गंगा सागर और पुष्कर जी में भी अपने पितरों के
लिए श्राद्ध और पिंड दान कर सकते है |
shraad paksh or pitra paksh or arpan kyo kiya jaata hai pindaan Gaya Ji mein , hariwaar mein , kurukshetra mein kiya jaata hai, kangagat niklane ki sampuran vidhi , apne pitro ko uchit gati dene ke liye hum pindaan karte hai or unki aatma ki shanti ke liye kanagaton mein ya pitra paksha mein poore vidhi vidhan se apne purvajon ko bhog dete hai, poorvajon ki shanti karna hamara dharm hai, or ye karya hume hamare purvajo or pitro ke saath shaanti pradaan karta hai, in visesh 15 dino mein hume hamare pitron ki
No comments:
Post a Comment