खराब भावों के स्वामी शुभ फल कैसे देते है ?
भारतीय
ज्योतिष विद्या अनुसार कुंडली में ३, ६, ८, १२ भाव को अशुभ फल कारक माना जाता है इस भाव के राशि
स्वामी तेज स्वभाव के साथ क्रूर होते है और कुंडली के दूसरे ग्रहों को भी प्रभावित
करते है । परन्तु यह भी सत्य है की ये ग्रह किसी विशेष दशा या विशेष महादशा या भाव
में ही शुभ या अशुभ फल देते है परन्तु ऊपर लिखित भावों के स्वामी किसी स्तिथि में शुभ
फल भी देते है कई बार ये ग्रह बहुत ही उत्तम फल प्रदान करते है । और कई बार नहीं
कर पाते इनके पीछे कारण है ।
जन्म
कुंडली में तृत्य भाव और स्वामी ग्रह बहन, भाई, साहस, सेवक का सुख, आस पास का निवास
स्थान, ताकत, दोस्त या दुश्मन, बाहुबल, आस पड़ोस आदि का विचार होता है । षष्टम भाव के
स्वामी ग्रह से रोग, दुश्मन, बाधा,
षड़यंत्र, चोरी, नुकसान,
अपमान का दुःख और अपने ही लोगों से विरोध आदि का विचार किया जाता है
। आठवें भाव और स्वामी ग्रह से जीवन वर्ष, मौत, मर्यादा, दुःख कष्ट, सवयं के लिए
मृत्यु कारक, गहरा संकट, अचानक का लाभ,
परस्त्री से लाभ, पारिवारिक कलह और क्लेश,
दिमागी चिंताए रोग निवारक ज्ञान आदि का विचार या अनुमान लगाया जाता है
। १२ वें भाव के स्वामी से गरीबी, खर्च, आय, शक्तिहीनता, दुश्मनी,
कर्ज, राज विद्रोह, सजा या
जेल, चारो तरफ के विरोध आदि का विचार किया जाता है ।
इन
भाव और इनके ग्रहों पर विचार करने से ऐसा लगता है की यही घर और ग्रह होते है जो जीवन
में अशुभ फल देते है ये कामों में और उन्नति में रूकावट डालते है । परन्तु बहुत से
जातक इन्ही भाव और स्वामी ग्रहों की वजह से सुख सुविधाएँ पाते है क्यूंकि उनकी कुंडलियों
में अशुभ भाव का प्रभाव शुभ स्तिथियों के कारण खत्म हो जाता है । अथवा शुभता उनकी अशुभता
पर भारी पड़ती है।
ज्योतिषानुसार हर ग्रह अपनी राशि में बैठा होने पर शुभ फल देता है
। जैसे अशुभ ग्रह भी यदि अपने घर में बैठा होगा तो शुभ फलादेश करता है । जैसा तीसरे
भाव का ग्रह यदि तीसरे घर में ही बैठा हो तो पारिवारिक सुख व सहयोग दिलवाता है और कार्यक्षेत्र
में भी सहयोगी वातावरण दिलवाता है । जातक अच्छा और लज़ीज़ खाना खाने वाला होता है । ऐसा
जातक साहसी, पराक्रमी और अपने कामों को सिद्ध करवाने में माहिर
होता है । ऐसे जातक स्वभाव से क्रूर होते है अतः वे क्रूरता से भी काम निकाल लेते है
क्यूंकि सूर्य, मंगल और राहु क्रूर ग्रह है पर इस भाव में शुभ
होने पर काम नहीं अटकने देते ।
यदि
षष्टम भाव का स्वामी ग्रह अपने भाव में बैठा हो तब ऐसा जातक अच्छी नौकरी और सरकार
में उच्च अधिकारी पद प्राप्त करता है और ऐसा जातक नाना या मामा के घर से भी सुख और धन प्राप्त पाने वाला, और विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्याधियों और बिमारियों से बचा रहने वाला होता
है । ऐसे जातक स्वाभाविक रूप से ज्ञानवान और रुतबे वाले अधिकारी होते है उनके हाव भाव
में रौद्रपूर्णता और आत्मविश्वास देखा जा सकता है ।
जिन
जातकों का अष्टम भाव का स्वामी ग्रह यदि अष्टम में विराजमान हो तब जातक लम्बी आयु और
पैतृक धनसंपदा का मालिक बनता है ऐसे लोगों को रास्ते में अचानक लाभ मिलने का अवसर
देखा जा सकता है ऐसा जातक सिद्धांतों पर चलने वाला होता है और उसे गुप्त तरीके से धन
लाभ समय समय पर मिलता रहता है अथवा लाटरी से भी धन की प्राप्ति हो सकती है
द्वादश
भाव का स्वामी ग्रह अपने घर में विराजित होने पर अत्यधिक मान सम्मान, धन वैभव देता है । ऐसे जातक समाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है चिकित्सालय,
विद्यालय, किताबघर आदि बनवा कर खूब नाम कमाते है
इसमें शनि की शुभ स्तिथि होने पर दूरस्थ यात्रा और उद्योगों से लाभ का योग बनता है
। विदेशो तक ख्याति प्राप्त होती है । ऐसे जातक खुद भी उन्नति करते है और दूसरों की
भी उन्नति करवाते है ।
अतः
अब हम जानते है की ३, ६, ८ और १२ भाव
अशुभ होते हुए भी किस प्रकार अपने स्वामी के कारण शुभ फल देने लगते है और ये उत्तम
फलादेश जीवन पर्यन्त उन्हें मिलता रहता है।
इसी
तरह से यदि इन भावों के स्वामी ग्रह एक दूसरे के भाव में आ जाये तो भी वे शुभ फल ही
देते है जैसे यदि ६ का स्वामी ग्रह ८ भाव में और अष्टम का स्वामी ६ में बैठा हो और
१२ भाव का स्वामी उसी में स्तिथ हो तब ये अच्छा योग कहा जाता है ऐसा जातक बहुत धनवान
बन जाता है परन्तु मन से दुखी रहता है । इसी तरह से अगर ८ का ग्रह ६ भाव में विराजित
होता है तब शत्रुओं का खात्मा हो जाता है जातक शत्रुहीन रहता है । यदि ६ भाव का ग्रह
८ में बैठा हो तो जातक को बिमारियों की आशंका कम रहती है । यदि अष्टम का स्वामी ग्रह
२ वे भाव में विराजित हो तब किसी सम्बन्धी की मौत से जातक को सम्पति व लाभ मिलता है
और ज्ञान के लिए भी अच्छा होता है । ८ भाव का स्वामी यदि प्राकृतिक शुभ होकर ९ भाव
में बैठा हो तब जातक लम्बी आयु पाता है ।यही स्वामी ग्रह १२ में बैठा हो तो शुभ यात्राएँ
करवाता है ।
क्रूर गृह से उत्तम फल कैसे मिलता है ? |
अशुभ
ग्रह का अपने भाव में विराजमान होना शुभ होता है परन्तु एक दूसरे के भाव में विराजित
होना और भी अधिक शुभ फलदायक होता है । यदि अशुभ ग्रह शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो उसका
फल भी शुभ होता है । जैसे ३ और ८ भाव के स्वामी ग्रह यदि एक दूसरे के भाव में बैठे
हो तो जातक उत्तम अन्वेषण करता है । ऐसे जातक को अगर २, ४, ५, ९ और दशम भाव की उच्च दृष्टि
मिले तो अविष्कार द्धारा प्रसिद्धि पाता है । क्यूंकि ३ और ८ भाव खोज के कार्य में
लग्न, छुपा ज्ञान और सूक्ष्मता की नजर और बुद्धिमता देते है ।
कई
बार ग्रहों के बदलाव से उल्टा राजयोग उत्पन्न होता है इसका अवतरण अशुभ ग्रहों की
युति अथवा दृष्टि से होता है और इतने काल तक कष्ट और समस्याएं झेलने पड़ते है । इस राजयोग
में कष्टो के बाद ही सम्मान और यश मिलता है किन्तु इसमें प्राकृतिक शुभ ग्रह का मिलान
नहीं होना होता है । ऐसा विदित है की सर्व अशुभ ग्रह बहुत तरह के मिले जुले फलादेश
देते है इनका कार्य व्यवहार समझने के लिए लगन कुंडली का ज्ञान होना भी जरूरी समझा जाता
है । मान ले की लगन मेष राशि में है अतः उसका स्वामी ग्रह मंगल प्रथम और अष्टम भाव
का मालिक है ऐसे में दशम में शुभ होने पर उच्च नौकरी की प्राप्ति होती है । शुक्र वृष
लगन का स्वामी है यह षष्टम भाव का स्वामी उच्च होकर १२ का बुरा फल नहीं दी पाता है
ये दोनों ग्रह कुम्भ और सिंह लगन में बहुत अच्छी सफलता देते है ।
राजयोग कैसे उत्पन्न होता है |
बहुत
बार कोई ग्रह अशुभ और शुभ दोनों भावो का मालिक होने पर ज्यादातर शुभ फल देता है अशुभता
की वजह से थोड़ी बहुत विघ्न बाधाएं तो आती है परन्तु हल भी मिल ही जाता है ।
कर्क
लग्न में गुरु शुभता और अशुभता दोनों भाव को स्वामी है अतः यह जीविकोपार्जन में अच्छी
स्तिथियों का निर्माण करता है, अफसरों का सहयोग दिलवाता है और
भाग्योदय हो जाता है । लेकिन घरेलु परेशानियों , शत्रु पक्ष से
दिक्कते, बिमारियों का खतरा आदि कुछ न कुछ परेशानी देता ही है
। इसी तरह का फलादेश मकर लग्न में बुध ग्रह और मिथुन लग्न में शनि ग्रह फलादेश करते
है ।
इस
प्रकार विचारपूर्वक देखने से प्रतीत होता है की अशुभ भावों के मालिक ग्रह हमेशा और
पूर्णतया अशुभ नहीं होते है । इनमे से कुछ ग्रह केंद्र त्रिकोण के मालिक होने से राजयोग
भी बनाते है और बहुत बार अशुभ होने पर भी अशुभ फल नहीं देते है । इसलिए अशुभ ग्रह की
भविष्यवाणी बिना ध्यानपूर्वक अध्ययन किये नहीं करनी चाहिए इससे जातक का मनोबल टूट सकता
है ।
कई
बार किसी कुंडली में कोई ग्रह दोनों ही भावों में अशुभ स्तिथि में हो तब भी उसकी पूरी
पूरी खराब गणना नहीं की जा सकती है । जैसे मेष लग्न में बुध ३ और ६ घर का मालिक होता
है गुरु तुला ओए वृषभ लग्न में दो अशुभ भाव का स्वामी बन जाता है । सूर्य मकर लग्न
में और शुक्र मीन और सिंह लग्न में अशुभ फलदायक होते है फिर भी इनकी स्थान और ग्रह
का बल ध्यान में रख कर ही फलादेश करना हितकर होता है । अब गुरु तुला लग्न में ३ और
६ भाव का मालिक ग्रह है और लग्न का शत्रु बनता है और १०० % हानि करने वाला दीखता है अगर गुरु कुम्भ राशि में हो तब ६ से १२ वे में हो
जायेगा और ३ से तीसरे ही स्थान पर विराजित होने से गुरु ३ और ६ घर का फल नहीं देगा
और दशा में भी थोड़ा बहुत ही फल देता है ज्यादा नहीं ।
बुध
कर्क लग्न में धन आगम के रास्ते बनाता है किन्तु साथ ही कही न कही से फिजूल पैसा ख़र्च
भी करवाता रहता है । इस तरह के बहुत से उदाहरण हमारे सामने है और धरना बनाते है की
अशुभ ग्रह का फल हमेशा पूरी तरह से अशुभ नहीं होता कई बार अशुभ स्थान पर विराजमान होने
पर भी ग्रह शुभ फलदायक हो जाते है ।
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